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स्नान और नहाने में बहुत अंतर है।

  स्नान‘ और ‘नहाने’ में बहुत अंतर है। कृपया एक बार अवश्य पढ़िए क्या आप जानते हैं कि स्नान और नहाने में क्या अन्तर है :- एक बार देवी सत्यभामा ने देवी रुक्मणि से पूछा कि दीदी क्या आपको मालुम है कि श्री कृष्ण जी बार बार द्रोपदी से मिलने क्यो जाते है। कोई अपनी बहन के घर बार बार मिलने थोड़ी ना जाता है, मुझे तो लगता है कुछ गड़बड़ है, ऐसा क्या है ? जो बार बार द्रोपदी के घर जाते है । तो देवी रुक्मणि ने कहा : बेकार की बातें मत करो ये बहन भाई का पवित्र सम्बन्ध है जाओ जाकर अपना काम करो। ठाकुर जी सब समझ ग्ए । और कहीं जाने लगे तो देवी सत्यभामा ने पूछा कि प्रभु आप कहां जा रहे हो ठाकुर जी ने कहा कि मैं द्रोपदी के घर जा रहा हूं । अब तो सत्यभामा जी और बेचैन हो गई और तुरन्त देवी रुक्मणि से बोली, 'देखो दीदी फिर वही द्रोपदी के घर जा रहे हैं ‘। कृष्ण जी ने कहा कि क्या तुम भी हमारे साथ चलोगी तो सत्यभामा जी फौरन तैयार हो गई और देवी रुक्मणि से बोली कि दीदी आप भी मेरे साथ चलो और द्रोपदी को ऐसा मज़ा चखा के आएंगे कि वो जीवन भर याद रखेगी।

आज की कहानी

  आज की कहानी उस दिन सबेरे आठ बजे मैं अपने शहर से दूसरे शहर जाने के लिए निकला । मैं रेलवे स्टेशन पँहुचा , पर देरी से पँहुचने के कारण मेरी ट्रेन निकल चुकी थी । मेरे पास दोपहर की ट्रेन के अलावा कोई चारा नही था । मैंने सोचा कही नाश्ता कर लिया जाए । बहुत जोर की भूख लगी थी । मैं होटल की ओर जा रहा था । अचानक रास्ते में मेरी नजर फुटपाथ पर बैठे दो बच्चों पर पड़ी । दोनों लगभग 10-12 साल के रहे होंगे .।बच्चों की हालत बहुत खराब थी । कमजोरी के कारण अस्थि पिंजर साफ दिखाई दे रहे थे ।वे भूखे लग रहे थे । छोटा बच्चा बड़े को खाने के बारे में कह रहा था और बड़ा उसे चुप कराने की कोशिश कर रहा था । मैं अचानक रुक गया ।दौड़ती भागती जिंदगी में पैर ठहर से गये । जीवन को देख मेरा मन भर आया । सोचा इन्हें कुछ पैसे दे दिए जाएँ । मैं उन्हें दस रु. देकर आगे बढ़ गया  तुरंत मेरे मन में एक विचार आया कितना कंजूस हूँ मैं ! दस रु. का क्या मिलेगा ? चाय तक ढंग से न मिलेगी ! स्वयं पर शर्म आयी फिर वापस लौटा । मैंने बच्चों से कहा - कुछ खाओगे ? बच्चे थोड़े असमंजस में पड़ गए ! जी । मैंने कहा बेटा ! मैं नाश्ता करने जा रहा हूँ , तुम भ

धर्मात्मा तोते की कथा

देवराज इंद्र और धर्मात्मा तोते की कथा  एक शिकारी ने शिकार पर तीर चलाया। तीर पर सबसे खतरनाक जहर लगा हुआ था। पर निशाना चूक गया। तीर हिरण की जगह एक फले-फूले पेड़ में जा लगा। पेड़ में जहर फैला, वह सूखने लगा। उस पर रहने वाले सभी पक्षी एक-एक कर उसे छोड़ गए।  पेड़ के कोटर में एक धर्मात्मा तोता बहुत बरसों से रहा करता था। तोता पेड़ छोड़ कर नहीं गया, बल्कि अब तो वह  ज्यादातर समय पेड़ पर ही रहता।दाना-पानी न मिलने से तोता भी सूख कर काँटा हुआ जा रहा था। बात देवराज इन्द्र तक पहुँची। मरते वृक्ष के लिए अपने प्राण दे रहे तोते को देखने के लिए इन्द्र स्वयं वहाँ आए। धर्मात्मा तोते ने उन्हें पहली नजर में ही पहचान लिया।  इन्द्र ने कहा, देखो भाई इस पेड़ पर न पत्ते हैं, न फूल, न फल। अब इसके दोबारा हरे होने की कौन कहे, बचने की भी कोई उम्मीद नहीं है। जंगल में कई ऐसे पेड़ हैं, जिनके बड़े-बड़े कोटर पत्तों से ढके हैं। पेड़ फल-फूल से भी लदे हैं। वहाँ से सरोवर भी पास है। तुम इस पेड़ पर क्या कर रहे हो, वहाँ क्यों नहीं चले जाते ? तोते ने जवाब दिया, देवराज, मैं इसी पर जन्मा, इसी पर बढ़ा, इसके मीठे फल खाए। इसने मुझे दुश

एक बड़े बूढ़े से बाबा थे मथुरा में चिकित्सक

 एक बड़े बूढ़े से बाबा थे मथुरा में चिकित्सक 7 वर्ष के थे तभी से अपने दादा जी के साथ गिरिराज जी की परिक्रमा करते ऐसे करते 72 साल के हो गये एक बार अपने नियम से वो रात में परिक्रमा जाने लगे। उस दिन मौसम थोड़ा खराब था।सबने मना किया,पर वो  माने नही। सोचा कल चिकित्सालय बन्द करना नही पड़ेगा। रात में ही परिक्रमा कर लूँगा। तो निकल गये परिक्रमा के लिये जिस मार्ग से जाते थे वो कच्चा था।पर उन्होंने तो मन बना ही लिया था कि आज तो जाऊंगा ही। मार्ग में वर्षा आरंभ हो गयी। अब एक जगह गड्ढे में फंस गये बाबा। जितना पैर आगे निकालते उतना और धँस जाते उस कीचड़ में। वे बाबा जी अक्सर एक पंक्ति को गाकर भगवान को खूब याद करते थे। जान चुके थे कि दलदल में फंस गया हूँ, बचूँगा तो नही अब। रात बहुत है कोई सहायता को भी नही आयेगा।अब उन्होंने जोर जोर ऊँची आवाज़ से भगवान को याद करना आरंभ किया, कहते, "श्री राधाकृष्ण के गह चरण, श्री गिरिवरधरण की ले शरण, बीच बीच मे आर्तनाद भी करते, हे गोपाल, बंशीलाल अपने चरणों मे स्थान देना इतने में एक नन्हे बालक की आवाज़ बाबा के कान में पड़ी कोन है?  बाबा बोले- मैं परिक्रमा यात्री। अरे लाला, कल

श्री नाथजी एक भाव विभोर कथा

 श्री नाथजी एक भाव विभोर कथा श्रीजी एक दिन भोर में अपने प्यारे कुम्भना के साथ गाँव के चौपाल पर बैठे थे , कितना अद्भुत दृश्य है - समस्त जगत का बाप एक नन्हें बालक की भांति अपने प्रेमिभक्त कुम्भनदास की गोदी में बैठ क्रीड़ा कर रहा है।    . तभी निकट से बृज की एक भोली ग्वालन निकट से निकली,    श्रीनाथजी ने गुझरी को आवाज दी ईधर आ तो गुझरी ने कहा बाबा आपको प्यास लगी है क्या   तो श्रीनाथजी ने कहा मुझे नही मेरे कुभंना को लगी है  श्रीनाथजी कुभंनदास को प्यार से कुभंना कहते।  कुभंनदास जी कह रहे है - श्रीजी मुझे प्यास नही लगी है  तो श्रीनाथजी ने गुझरी से कहा- इसको छाछ पीला जैसे ही गुझरी ने कुभंनदास जी को छाछ पिलिइ पीछे से श्रीजी ने उसकी पोटली मे से एक रोटी निकाली और कुभंनदास जी ने देख लिया।  श्रीनाथजी ने गुझरी से कहा अब तु जा तो भोली ग्वालन बाबा को छाछ पिला कर अपने कार्य को चली गयी।  गुझरी के जाते ही कुंभनदास जी ने श्रीनाथ जी से कहा - श्रीजी आपकी ये चोरी की आदत गई नहीं  तो श्रीनाथजी ने आधी रोटी कुभंना को दी और आधी रोटी आप ने ली  जैसे ही कुभंनदास जी ने ली तो श्रीनाथजी ने कहा अरे कुभंना तू चख तो सही तो

बड़ी सुन्दर सत्य कथा है ठाकुर जी महाराज की अवश्य पढ़े

  बड़ी सुन्दर सत्य कथा है l ठाकुर जी महाराज की अवश्य पढ़े वृंदावन के जंगल में साधुओं के एक आश्रम में  जिसे कदंब खांडी, या "कदंब के पेड़ों की भीड़" के नाम से जाना जाता है। बरसाने  से 20 किलोमीटर पहले स्थित यह सत्य युग के दृश्य जैसा प्रतीत होता है। यह व्रज का एक सुंदर अछूता क्षेत्र है, जहाँ गायें आज़ाद घूमती हैं, हिरणों का खेल, और तोते और मोर हर जगह होते हैं। हम एक साधु से मिले, जिसने अपना पूरा जीवन एक बरगद के पेड़ के नीचे गुजारा, केवल दूध पर निर्वाह किया। वह एक एंथिल के बगल में सोता है, जहाँ दो बड़े काले नाग प्रतिदिन भोजन की तलाश में निकलते हैं। 💠 बड़ी सुन्दर सत्य कथा है ठाकुर जी महाराज की अवश्य पढ़े 💠 एक बार वृन्दावन में एक संत हुए कदम्खंडी जी महाराज । उनकी बड़ी बड़ी जटाएं थी। वो वृन्दावन के सघन वन में जाके भजन करते थे।एक दिन जा रहे थे तो रास्ते में उनकी बड़ी बड़ी जटाए झाडियो में उलझ गई। उन्होंने खूब प्रयत्न किया किन्तु सफल नहीं हो पाए। और थक के वही बैठ गए और बैठे बैठे गुनगुनाने लगे। "हे मुरलीधर छलिया मोहन हम भी तुमको दिल दे बैठे, गम पहले से ही कम तो ना थे, एक और मुसीबत ले

शरद पूर्णिमा की कहानी

शरद पूर्णिमा की कहानी वर्ष के बारह महीनों में ये पूर्णिमा ऐसी है, जो तन, मन और धन तीनों के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है। इस पूर्णिमा को चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है, तो धन की देवी महालक्ष्मी रात को ये देखने के लिए निकलती हैं कि कौन जाग रहा है और वह अपने कर्मनिष्ठ भक्तों को धन-धान्य से भरपूर करती हैं। शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima 2022 Katha): पुराने समय की बात है एक नगर में एक सेठ (साहूकार) को दो बेटियां थीं. दोनो पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थीं. लेकिन बड़ी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधूरा व्रत करती थी आज भक्त मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना करेंगे. हर साल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा (Purnima) तिथि को शरद पूर्णिमा मनाई जाती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन धन की देवी मां लक्ष्मी धरती पर भ्रमण करती हैं. यही वजह है कि इसे कोजागरी पूर्णिमा भी कहा जाता है. मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणें अमृत की बारिश करती हैं, इसीलिए आज लोग खीर बनाकर चन्द्रमा की रोशनी के नीचे रखेंगे. आइए जानते हैं शरद पूर्णिमा की पौराणिक कथा... शरद पूर्णिमा की पौराणिक कथा शरद पूर