कार्तिक माह की कहानी एक समय की बात है किसी नगर में एक बूढ़ा व्यक्ति रहता था और उसकी सात बहुएँ थी. एक बार कार्तिक का महीना आया और उसने अपनी बहुओं से कहा कि मैं कार्तिक का स्नान करुंगा, क्या तुम इसे निभा दोगी? सात में से छ: बहुओं ने मना कर दिया लेकिन बड़ी बहू ने कहा कि मैं निभा दूंगी. बूढ़ा हर रोज सुबह उठता और नदी पर स्नान कर घर आता. गीली धोती को वह बड़ी बहू के आँगन में सुखा देता. जैसे-जैसे उस गीली धोती में से पानी की बूँदें जमीन पर गिरती वैसे ही वह हीरे मोतियों में बदल जाती. कार्तिक मास की कहानी लिखी हुई धोती से हीरे-मोती गिरते देख बाकी छ: बहुओं से रहा नही गया और वे बोली कि हम भी बूढ़े को अपने यहाँ नहाने को बोलते हैं. उन्होने कहा कि पिताजी आप कल से हमारे यहाँ कार्तिक नहा लेना. बूढ़े ने कहा कि ठीक है, मुझे तो नहाना ही है, मैं तुम्हारे यहाँ नहा लूंगा. बूढ़ा सुबह सवेरे स्नान कर के आया और धोती उसने दूसरी बहू के आँगन में सुखाने के लिए डाल दी लेकिन यहाँ हीरे-मोती की बजाय कीचड़ टपकने लगा. बहुओं ने यह देखा तो कहा कि आप हमारे यहाँ पाप का स्नान कर रहे हो इसलिए यहाँ से जाओ और बड़ी बहू के यहाँ ह