Skip to main content

सरफरोशी की तमन्ना Sarfaroshi Hindi lyrics Gane

 सरफरोशी की तमन्ना Sarfaroshi Ki Tamanna Hindi lyrics Gane 


सरफरोशी की तमन्ना भारतीय क्रान्तिकारी बिस्मिल अज़ीमाबादी द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध देशभक्तिपूर्ण ग़ज़ल है जिसमें उन्होंने आत्मोत्सर्ग की भावना को व्यक्त किया था। उनकी यह तमन्ना क्रान्तिकारियों का मन्त्र बन गयी थी


सरफरोशी की तमन्ना



सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है


ऐ वतन, करता नहीं क्यूँ दूसरी कुछ बातचीत,

देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है

ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत, मैं तेरे ऊपर निसार,

अब तेरी हिम्मत का चरचा ग़ैर की महफ़िल में है

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


वक़्त आने पर बता देंगे तुझे, ए आसमान,

हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है

खेँच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उमीद,

आशिकों का आज जमघट कूचा-ए-क़ातिल में है

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


है लिए हथियार दुश्मन ताक में बैठा उधर,

और हम तैयार हैं सीना लिए अपना इधर.

ख़ून से खेलेंगे होली अगर वतन मुश्क़िल में है

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


हाथ, जिन में है जूनून, कटते नही तलवार से,

सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से.

और भड़केगा जो शोला सा हमारे दिल में है,


सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


हम तो घर से ही थे निकले बाँधकर सर पर कफ़न,

जाँ हथेली पर लिए लो बढ चले हैं ये कदम.

ज़िंदगी तो अपनी मॆहमाँ मौत की महफ़िल में है

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


यूँ खड़ा मक़्तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार,

क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है?

दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब,

होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको न आज.

दूर रह पाए जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है,

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमे न हो ख़ून-ए-जुनून

क्या लड़े तूफ़ान से जो कश्ती-ए-साहिल में है

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में 


Comments

Popular posts from this blog

स्नान और नहाने में बहुत अंतर है।

  स्नान‘ और ‘नहाने’ में बहुत अंतर है। कृपया एक बार अवश्य पढ़िए क्या आप जानते हैं कि स्नान और नहाने में क्या अन्तर है :- एक बार देवी सत्यभामा ने देवी रुक्मणि से पूछा कि दीदी क्या आपको मालुम है कि श्री कृष्ण जी बार बार द्रोपदी से मिलने क्यो जाते है। कोई अपनी बहन के घर बार बार मिलने थोड़ी ना जाता है, मुझे तो लगता है कुछ गड़बड़ है, ऐसा क्या है ? जो बार बार द्रोपदी के घर जाते है । तो देवी रुक्मणि ने कहा : बेकार की बातें मत करो ये बहन भाई का पवित्र सम्बन्ध है जाओ जाकर अपना काम करो। ठाकुर जी सब समझ ग्ए । और कहीं जाने लगे तो देवी सत्यभामा ने पूछा कि प्रभु आप कहां जा रहे हो ठाकुर जी ने कहा कि मैं द्रोपदी के घर जा रहा हूं । अब तो सत्यभामा जी और बेचैन हो गई और तुरन्त देवी रुक्मणि से बोली, 'देखो दीदी फिर वही द्रोपदी के घर जा रहे हैं ‘। कृष्ण जी ने कहा कि क्या तुम भी हमारे साथ चलोगी तो सत्यभामा जी फौरन तैयार हो गई और देवी रुक्मणि से बोली कि दीदी आप भी मेरे साथ चलो और द्रोपदी को ऐसा मज़ा चखा के आएंगे कि वो जीवन भर याद रखेगी।

शरद पूर्णिमा की कहानी

शरद पूर्णिमा की कहानी वर्ष के बारह महीनों में ये पूर्णिमा ऐसी है, जो तन, मन और धन तीनों के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है। इस पूर्णिमा को चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है, तो धन की देवी महालक्ष्मी रात को ये देखने के लिए निकलती हैं कि कौन जाग रहा है और वह अपने कर्मनिष्ठ भक्तों को धन-धान्य से भरपूर करती हैं। शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima 2022 Katha): पुराने समय की बात है एक नगर में एक सेठ (साहूकार) को दो बेटियां थीं. दोनो पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थीं. लेकिन बड़ी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधूरा व्रत करती थी आज भक्त मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना करेंगे. हर साल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा (Purnima) तिथि को शरद पूर्णिमा मनाई जाती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन धन की देवी मां लक्ष्मी धरती पर भ्रमण करती हैं. यही वजह है कि इसे कोजागरी पूर्णिमा भी कहा जाता है. मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणें अमृत की बारिश करती हैं, इसीलिए आज लोग खीर बनाकर चन्द्रमा की रोशनी के नीचे रखेंगे. आइए जानते हैं शरद पूर्णिमा की पौराणिक कथा... शरद पूर्णिमा की पौराणिक कथा शरद पूर

बड़ी सुन्दर सत्य कथा है ठाकुर जी महाराज की अवश्य पढ़े

  बड़ी सुन्दर सत्य कथा है l ठाकुर जी महाराज की अवश्य पढ़े वृंदावन के जंगल में साधुओं के एक आश्रम में  जिसे कदंब खांडी, या "कदंब के पेड़ों की भीड़" के नाम से जाना जाता है। बरसाने  से 20 किलोमीटर पहले स्थित यह सत्य युग के दृश्य जैसा प्रतीत होता है। यह व्रज का एक सुंदर अछूता क्षेत्र है, जहाँ गायें आज़ाद घूमती हैं, हिरणों का खेल, और तोते और मोर हर जगह होते हैं। हम एक साधु से मिले, जिसने अपना पूरा जीवन एक बरगद के पेड़ के नीचे गुजारा, केवल दूध पर निर्वाह किया। वह एक एंथिल के बगल में सोता है, जहाँ दो बड़े काले नाग प्रतिदिन भोजन की तलाश में निकलते हैं। 💠 बड़ी सुन्दर सत्य कथा है ठाकुर जी महाराज की अवश्य पढ़े 💠 एक बार वृन्दावन में एक संत हुए कदम्खंडी जी महाराज । उनकी बड़ी बड़ी जटाएं थी। वो वृन्दावन के सघन वन में जाके भजन करते थे।एक दिन जा रहे थे तो रास्ते में उनकी बड़ी बड़ी जटाए झाडियो में उलझ गई। उन्होंने खूब प्रयत्न किया किन्तु सफल नहीं हो पाए। और थक के वही बैठ गए और बैठे बैठे गुनगुनाने लगे। "हे मुरलीधर छलिया मोहन हम भी तुमको दिल दे बैठे, गम पहले से ही कम तो ना थे, एक और मुसीबत ले